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उसका दोष क्या है भाग - 17 15 पार्ट सीरीज



उसका दोष क्या है (भाग-17) 

            कहानी अब तक
  संगीता को टी. बी.हो जाने के कारण बच्चे को विद्या को दिया गया था, और अब वह उसे वापस ले जाने वाली है | यह जानकारी मिलते ही विद्या "बाबू" को संगीता को सौंप और कई कटु बातें रमेश और संगीता को सुना कर उसके घर से निकल जाती है l
               अब आगे 
अपने घर आकर बिना कुछ खाए-पिए बिस्तर में गिर गई विद्या,और सारी रात रोती रही |  किस कुघड़ी में उसने रमेश से दिल लगाया था l रमा ने तो उसे विवाह से मना भी किया था, परंतु वह अपने प्रेम के आगे विवश होकर रमा की बात नहीं समझ पाई lओह, कितना बड़ा धोखा हुआ उसके साथ l किसी चलचित्र की भाँति पिछली सारी बातें एक-एक कर उसके मस्तिष्क में घुमड़ती रहीं l कैसे उसने रमेश से दिल लगाया था | रमेश उसके साथ पग-पग पर छल करता रहा, और मैं बेवकूफ छली जाती रही l पहले माता पिता के कहने पर संगीता से विवाह कर लिया, और फिर विद्या की नौकरी से प्रभावित होकर विद्या को भी नहीं छोड़ कर उसे भी अपने जाल में कैसे बांध लिया | तरह-तरह की बातों से उसके दिल को अपने वश में कर विवाह बंधन में बांध लिया | सुनियोजित षड्यंत्र रच कर गर्भनिरोधक उसे देता रहा, जिससे वह गर्भधारण न कर सके l बच्चे के लिए तरसती विद्या को किसी बच्चे को गोद भी नहीं लेने दिया और संगीता के टी.बी.से ग्रसित होने पर उसके दोनों छोटे बच्चों को जिसे संगीता पालने में असमर्थ थी, बहुत अधिक होशियारी के साथ गोद देने के नाम पर विद्या के हवाले कर दिया | वह अपने बच्चे की तरह दोनों बच्चों को संभालती रही पर अब संगीता के स्वस्थ हो जाने के बाद वह फिर कोई षड्यंत्र रचता, बच्चे को ले जाने का | इसलिए उचित ही हुआ जो वह संगीता को बच्चे को दे आई l दूसरे के बच्चे का क्या मोह करना l परन्तु मेरी जिंदगी का क्या,क्या यूं ही मैं बच्चे के लिए तरसती जिंदगी भर अकेली रहूंगी ? यह सब सोचती विद्या रात भर रोती रही |
   विद्या धीरे-धीरे अपने को संभालने का प्रयत्न कर रही थी, परंतु उसकी रूचि अब घर के किसी कार्य में नहीं रह गई थी l रमेश से भी खिंची-खिंची रहती |
   और अब रमेश पुनः संगीता और बच्चों को साथ लेकर घर आ गया था | घर पूर्व के समान संगीता के अधिकार क्षेत्र में आ गया था | विद्या को अब घर में अधिकार जमाने की इच्छा भी नहीं रह गई थी | वह सिर्फ अतिथि गृह तक सीमित रह गई थी | यदि कोई भी अनजान व्यक्ति देखता तो  उसे यही लगता - विद्या किराएदार है घर की अथवा कोई अतिथि | पूरा घर परिवार संगीता का था l विद्या को दिखा-दिखा कर, उसे जताते हुए,संगीता अपना गृहस्थाश्रम धर्म चला रही थी,और रमेश के साथ भी वह एकल पत्नी के समान ही व्यवहार कर रही थी l
रमेश के व्यवहार में भी विद्या के लिए वह गर्माहट नहीं रह गयी थी l वह दुकान से आ कर बच्चों में उलझ जाता, माता पिता के पास बैठता और संगीता को भी समय देता | उसकी रात पूरी तरह संगीता के लिए ही थी |
यह सब देख विद्या दु:खी होती, परंतु रमेश के प्रति वितृष्णा भी भरती जा रही थी उसके हृदय में l मन बहलाने के लिये वह बीच-बीच में दो-चार दिन मायके भी रुक जाती l वहाँ भी वह किसे अपने दिल की बात बतलाती ? 
धीरे-धीरे वह अंदर ही अंदर टूट कर बिखरती जा रही थी l रमेश ने एक बार भी उसके दिल के अंदर झांकने का प्रयास नहीं किया l बिखरी हुई विद्या को समेटने का प्रयास तो दूर उसके रिसते जख्म पर कभी मरहम भी नहीं रख पाया l उल्टा उसके समक्ष संगीता के साथ  प्रेमालाप करते उसके जख्मों पर नमक मिर्ची छिड़क रहा था l
ऐसी स्थिति में विद्या का प्रयास होता वह घर से जितना अधिक दूर रह सके रहे l इसी प्रयास के अंतर्गत कभी-कभी वह मायके में रह जाती l परन्तु वहाँ भी कितने दिन रह सकती थी l अधिक दिन रहने से माँ-बाबा को भी सारी स्थिति ज्ञात हो जाती, और वह नहीं चाह रही थी माँ-बाबा को किसी तरह का कोई मानसिक दुःख इस उम्र में हो l इसी से सारी पीड़ा वह अकेले ही सहती रही l
   इसी बीच वह जिस बस से अपने स्कूल जाती थी उसी की कंपनी ने चार धाम यात्रा का कार्यक्रम बनाया, और उसने उसमें अपना आरक्षण करवा लिया l वह चार धाम यात्रा पर एक माह के लिए निकल गई l रमेश या परिवार के किसी सदस्य ने उसे यात्रा पर अकेले जाने के लिए एक बार भी नहीं रोका, और किसी ने उसके साथ जाने के लिए अपने को प्रेम से प्रस्तुत भी नहीं किया l
उसकी आत्मा को शान्ति प्रदान करने में  चार धाम यात्रा काफी सीमा तक सार्थक रहा l कुछ ही दिन के बाद फिर ऐसी ही एक यात्रा में उसने अपना आरक्षण करवा लिया, जिसमें दक्षिण भारत के विभिन्न दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कार्यक्रम बनाया गया था l लगभग एक महीना से कुछ अधिक का ही था यह कार्यक्रम l
इस बार जब वो जाने लगी तब रमेश ने उसे टोका -  "यह तुम बार-बार इतनी लम्बी यात्राएं क्यों कर रही हो, तुम्हें नहीं लगता इतनी लंबी-लंबी यात्रा अकेली नहीं करनी चाहिए तुम्हें"?
   विद्या  -   "मैं जब जिंदगी की इतनी कठिन यात्रा अकेली कर रही हूं,यह तो सिर्फ कुछ दिन की यात्राएं हैं l इसमें क्या लगना"?
  रमेश  -   तुमने अभी कुछ दिन पहले चार धाम यात्रा के लिये छुट्टी ली थी, वह  अभी स्वीकृत हुई नहीं है, और फिर ले रही हो अवकाश l क्या यह स्वीकृत हो पाएगी"?
  विद्या -  "नहीं होगी तो"?
  रमेश  -   "कमाल है, स्वीकृत नहीं होगी तो तुम्हें वेतन कैसे मिलेगा"?
  विद्या -  "नहीं मिलेगा वेतन तो क्या होगा, जब मैं फिर काम करने लगूँगी तब मिलेगा l मेरे यात्रा के खर्च के लिए मैंने पैसे रख लिए हैं l और घर में रहूँगी तो दो रोटी तुम लोग तो खिला ही सकते हो, मेरे इतने दिन की सेवा के बदले"|
रमेश घबड़ाया इस तरह की बोली सुनकर -  "नहीं मेरे कहने का मतलब यह नहीं है, मेरे कहने का मतलब है बैंक का किश्त पिछला भी बाकी है,अभी फिर वेतन नहीं मिलने से बाकी रह जाएगा l भार बहुत हो जायेगा कैसे चुका पायेंगे"?
   विद्या  -    "क्यों क्या बैंक का कर्ज चुकाना मेरी जिम्मेदारी है ? पूरे घर पर तो अधिकार तुम लोगों का है, मुझे सिर्फ एक कमरा तुमने दिया हुआ है | उसका  किराया जितना होता पूरे जीवन का उससे अधिक मैं दे चुकी हूं l अब मकान का किश्त तुम चुका देना l वैसे भी अलग एक परिवार का जो खर्च हो रहा था, मकान किराया सहित वह तो बच रहा है ना, उसमें से दे दो"|
उसकी इतनी तल्ख बोली सुनकर रमेश सकपकाया और उसे कुछ नहीं कह पाया l
इस बार की यात्रा में उसका परिचय सनोज नाम के प्रखंड के एक कर्मचारी के साथ हो गया था l वह रास्ते में उसका बहुत ध्यान रखता था l साथ-साथ सफऱ करते धीरे-धीरे उनके बीच संबंध प्रगाढ़ होते गये और किसी भावुक क्षण में अपने विषय में सारी जानकारी वह उसको दे बैठी l
  सनोज विवाहित बाल बच्चे दार व्यक्ति हैं l गंभीर व्यक्तित्व है उनका l विद्या ने उनके मित्रवत व्यवहार से आकर्षित होकर उन्हें अपनी सारी व्यथा बतला दी, और उन्होंने भी विद्या के साथ बहुत सहानुभूति दिखालाते हुए रमेश की बहुत भर्त्सना की l उनके विचार में यदि रमेश ने प्रेम किया था तो उसे प्रेम निभाना चाहिए था l उसने बार-बार गलतियां कीं | पहले तो उसे संगीता से विवाह नहीं करना चाहिए था, और यदि उसने संगीता से विवाह के बाद पुनः विद्या से विवाह किया तो उसे दोनों के बीच संतुलन बना कर रखना चाहिए था l
इस यात्रा में विद्या को मानसिक संबल मिला सनोज का l वह बहुत अधिक मानसिक शान्ति का अनुभव कर रही थी l यह पूरी यात्रा उसके लिए बहुत अधिक सुखद रही l लौटने के बाद वह अपने को धीरे धीरे सामान्य जीवन में वापस ला रही थी l परंतु अब उसका दिल परिवार की ओर से उचटता जा रहा था l वहीं सनोज अब अक्सर उसके साथ सफर करते उसके बहुत अधिक निकट आ गए थे l वापसी में वे अक्सर रांची आकर थोड़ी देर एक साथ समय व्यतीत करते और फिर विद्या को उसके घर के कुछ पास तक छोड़ देते l शनिवार को एवं अन्य छुट्टियों के दिन दोनों एक साथ समय व्यतीत करते, एक दूसरे के बहुत अधिक निकट आ गये थे l
      कथा जारी है l
                              क्रमशः 
   निर्मला कर्ण



       

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2 Comments

Abhilasha Deshpande

05-Jul-2023 03:07 AM

अद्भुत कहानी

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वानी

16-Jun-2023 07:08 PM

Nice

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